चीनी का एक चम्मच कड़वी दवा को निगलने में मदद कर सकता है, लेकिन वक्त के साथ यही दवा की जरूरत की वजह भी बन सकता है।
आज जब बोतलबंद जूस, फ्लेवर्ड योगर्ट से लेकर आम कंडिमेंट्स तक ज़्यादातर प्रोसेस्ड फूड में ऐडेड शुगर छुपी होती है, न्यूट्रिशन एक्सपर्ट एक महीने के “नो-शुगर” ब्रेक की सलाह दे रहे हैं।
चीनी छोड़ना आसान नहीं
CK बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम के इंटरनल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. तुषार तायल बताते हैं कि 30 दिन तक शुगर से दूरी रखने पर शरीर और दिमाग—दोनों में बदलाव दिखते हैं, लेकिन शुरुआत थोड़ी मुश्किल होती है।
“पहले कुछ दिनों में चिड़चिड़ापन, थकान, घबराहट या हल्का लो फील होना आम है। दिमाग को शुगर से मिलने वाला डोपामिन नहीं मिलता, इसलिए सिरदर्द और तीव्र क्रेविंग भी हो सकती है,” वे कहते हैं।
दूसरे हफ्ते से बैलेंस महसूस होगा
दूसरे हफ्ते तक ब्लड शुगर स्थिर होने लगता है। एनर्जी क्रैश और अचानक भूख के स्पाइक्स कम होते हैं। डॉ. तायल के मुताबिक, शरीर में इंसुलिन सेंसिटिविटी बेहतर होने के संकेत दिखते हैं, जिससे ब्लड ग्लूकोज मैनेज करना आसान होता है।
इंसुलिन लेवल नीचे आने से बॉडी स्टोर्ड फैट बर्न करने को प्रोत्साहित होती है—यानी शुरुआती वज़न घटने के संकेत मिल सकते हैं।
वजन और त्वचा में दिखेगा असर
तीसरे हफ्ते से फायदे और साफ दिखने लगते हैं।
स्किन पर ब्रेकआउट्स और इंफ्लेमेशन कम हो सकते हैं, कॉम्प्लेक्शन क्लियर दिखता है। मेंटली भी स्थिरता, अलर्टनेस और फोकस बढ़ते हैं क्योंकि “शुगर क्रैश” नहीं होते।
“कैलोरी इंटेक घटने और इंसुलिन लेवल स्थिर रहने से वज़न घटने का असर दिखता है। इसके साथ हाई कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और फैटी लीवर जैसी कंडिशन्स का रिस्क भी कम होता है,” डॉ. तायल कहते हैं।
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, द्वारका की HOD (क्लिनिकल न्यूट्रिशन एंड डाएटेटिक्स) उपासना पर्व कालरा के अनुसार, मीठे पेय, मिठाइयां और बेक्ड गुड्स हटने पर लोग फल, नट्स और डेयरी जैसे न्यूट्रिएंट-डेंस विकल्प चुनते हैं—जो पेट भरने के साथ फाइबर, विटामिन और मिनरल भी देते हैं।
“लोग अक्सर शुगर बिस्किट्स या पैक्ड स्नैक्स की जगह बेरीज़, भिगोए खजूर या दही का बोल लेने लगते हैं। ये वेट मैनेजमेंट के लिए अच्छे हैं और एंटीऑक्सिडेंट्स व गट हेल्थ सपोर्ट भी देते हैं,” वे बताती हैं।
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम की सीनियर क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट शिखा सिंह कहती हैं, शुगर फ्लक्टुएशन से सुस्ती और चिड़चिड़ापन बढ़ता है।
“जब ये उतार-चढ़ाव हटते हैं, तो सुस्ती कम होती है, एनर्जी सस्टेन्ड रहती है और दोपहर में मीठा खाने की तलब घटती है,” वे जोड़ती हैं।
शुगर शरीर में इंफ्लेमेशन बढ़ा सकती है, जिससे एक्ने और प्रीमेच्योर एजिंग ट्रिगर हो सकते हैं। “कुछ हफ्तों बाद कई लोग क्लियरर स्किन, पफीनेस और ब्रेकआउट्स में कमी नोटिस करते हैं,” सिंह कहती हैं।
टेस्ट बड्स भी रीसेट होते हैं
इतना ही नहीं, स्वाद और क्रेविंग में भी सूक्ष्म बदलाव आते हैं।
शुगर का एडिक्टिव नेचर मिठास की परसेप्शन बदल देता है। 30 दिन की दूरी से पैलेट री-कैलिब्रेट होने लगता है।
“अक्सर लोग कहते हैं कि एक महीने बाद मीठे की तलब पहले जैसी नहीं रहती, और फल पहले से ज्यादा मीठे लगते हैं,” सिंह बताती हैं।
सिर्फ 30 दिन का टारगेट नहीं होना चाहिए
अक्सर बातचीत वजन घटाने या ‘डिटॉक्स’ तक सीमित रह जाती है, लेकिन एक्सपर्ट्स कहते हैं कि शुगर रिडक्शन को 30-दिन की चैलेंज की तरह नहीं, लंबी अवधि की हेल्थ इंवेस्टमेंट की तरह देखें।
“कई लोग इसे न्यू ईयर या समर रेज़ोल्यूशन बना लेते हैं। असली फर्क तब पड़ता है जब शुगर कम करना लाइफस्टाइल का स्थायी हिस्सा बने,” कालरा कहती हैं।
मुश्किल यह है कि रिफाइंड शुगर हर जगह है—केचप, ब्रेड, सीरियल, सॉस, बेकरी आइटम्स और नमकीन पैक्ड फूड तक। हाई-फ्रक्टोज़ कॉर्न सिरप और डेक्सट्रोज़ जैसे नाम अक्सर इंग्रीडिएंट लिस्ट में छुपे रहते हैं। इसलिए लेबल पढ़ने की आदत जरूरी है।
रिफाइंड शुगर से दूरी—सही तरीका
एक्सपर्ट्स नेचुरल स्वीटनर्स के इस्तेमाल की हौसला-अफ़ज़ाई करते हैं, लेकिन सावधानी के साथ।
जैगरी, हनी या डेट्स रिफाइंड शुगर से बेहतर हैं, पर ये भी ब्लड शुगर को प्रभावित करते हैं—इसलिए मॉडरेशन ज़रूरी है।
सिंह कहती हैं, ताज़े फल, भिगोए अंजीर और प्लेन लस्सी/कर्ड-बेस्ड स्मूथीज़ जैसे होल फूड्स मीठा खाने की चाह को हेल्दी तरीके से शांत करते हैं।
कम-मीठे में स्वाद बढ़ाने की ट्रिक—मसाले। दालचीनी, इलायची और वनीला जैसे इंग्रीडिएंट बिना चीनी जोड़े मिठास का एहसास बढ़ा सकते हैं।
“इन्हें चाय, पोरिज या फ्रूट बाउल में यूज़ करें—अंतर साफ दिखेगा,” सिंह सलाह देती हैं।
डॉ. तायल whole, unprocessed फूड्स—फल, सब्जियां, होल ग्रेन्स, दालें, नट्स और लीन प्रोटीन—पर टिके रहने को कहते हैं।
फलों और डेयरी में मौजूद नेचुरल शुगर फाइबर/न्यूट्रिएंट्स के साथ आती है, जो एब्ज़ॉर्प्शन धीमा करती है। अच्छी हाइड्रेशन, प्रोटीन और फाइबर बढ़ाने से क्रेविंग्स कंट्रोल होती हैं और अनावश्यक स्नैकिंग घटती है।
लंबे समय के फायदे
लो-शुगर डाइट का रिश्ता टाइप-2 डायबिटीज, फैटी लीवर और कार्डियोवैस्कुलर कंडीशंस के कम जोखिम से जोड़ा जाता है।
मेंटल वेलबीइंग भी सुधरती है—कई लोग मूड स्टैबिलिटी और बेहतर नींद रिपोर्ट करते हैं।
डॉ. तायल का निष्कर्ष: “30 दिन का शुगर-फ्री रूटीन आपके टेस्ट बड्स को रीसेट कर सकता है और शुगर के साथ रिश्ते को बदल सकता है।”
एक महीने का एक्सपेरिमेंट शुरुआत भर है; असली बदलाव धीरे-धीरे अपनाई गई लो-शुगर आदतों से आता है—यही एक्सपर्ट्स की राय है।
अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। पाठकों से अनुरोध है कि वे इस जानकारी को उपलब्ध स्रोतों से सत्यापित करें।