क्या आपको लगता है जलपरियां सिर्फ कहानियों में होती हैं? तो मिलिए साउथ कोरिया की “हेन्यो डाइवर्स” से — ये वो महिलाएं हैं जो बिना ऑक्सीजन टैंक के कई मिनट तक सांस रोककर समुद्र में गोता लगाती हैं और दिनभर समुद्री खजाना निकालती हैं।
सदियों पुरानी परंपरा, अब खतरे में
ये महिलाएं दक्षिण कोरिया के जेजू आइलैंड से आती हैं (photo:BBC)
ये महिलाएं दक्षिण कोरिया के जेजू आइलैंड से आती हैं। इन्हें “जिंदगी की असली जलपरियां” कहा जाता है। सदियों से ये महिलाएं समुद्र की गहराइयों में जाकर शंख, सीप और मछलियां निकालती रही हैं। लेकिन अब इनकी परंपरा खतरे में है क्योंकि नई पीढ़ी की महिलाएं ये कठिन काम अपनाने में हिचकिचा रही हैं।
मालाला और फिल्मकार का साथ
मेरिका-कोरियन फिल्मकार सू किम और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई (photo-BBC)
अमेरिका-कोरियन फिल्मकार सू किम और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने मिलकर इन महिलाओं की कहानी दुनिया तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। उनकी फिल्म “The Last of the Sea Women” में दिखाया गया है कि किस तरह 60, 70 और 80 साल की उम्र की महिलाएं भी रोज सुबह 6 बजे गोता लगाती हैं और घंटों तक समुद्र में रहती हैं।
मलाला कहती हैं— “जब मैंने इनके बारे में जाना तो मुझे झटका लगा। इस डॉक्यूमेंट्री से हर लड़की को खुद पर विश्वास होना चाहिए कि वह कुछ भी कर सकती है। और हां, अब तो मुझे भी तैरना सीखने का मन हो रहा है।”
कितनी कठिन है इनकी जिंदगी
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एक सत्र में 100 बार तक गोता लगाना।
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4 घंटे तक समुद्र से खजाना निकालना और फिर 3-4 घंटे तक उसे तैयार करना।
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बिना ऑक्सीजन टैंक, सिर्फ सांस रोककर काम करना।
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बिना इंश्योरेंस, खतरों से भरा पेशा।
बदलता समुद्र, बढ़ता खतरा
क्लाइमेट चेंज और जापान के फुकुशिमा प्लांट से छोड़े जा रहे रेडियोएक्टिव पानी के खिलाफ भी ये महिलाएं आवाज़ उठा रही हैं। इनमें से एक हेन्यो, सून डिओक जांग तो UN तक पहुंची और अपनी बात रखी।
नई उम्मीद
हालांकि युवा पीढ़ी इस पेशे से दूर जा रही है, लेकिन कुछ नई लड़कियां सोशल मीडिया पर इसे अपनाकर मिसाल बन रही हैं। बुजुर्ग हेन्यो उन्हें प्यार से “बेबीज़” कहती हैं और वे उन्हें “आंटीज़” बुलाती हैं।
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