
Published on: 22/07/2025
रोशनी देवी, एक 32 वर्षीय ट्रांसजेंडर महिला, हर सुबह कोलकाता के रास्तों पर अपनी नई यात्रा शुरू करती हैं। एक साल पहले तक वो सिर्फ मंदिरों के बाहर आशीर्वाद देने और भीख मांगने का काम करती थीं, लेकिन आज वो एक प्रशिक्षित ड्राइवर हैं। ये बदलाव संभव हुआ है कोलकाता में शुरू हुए भारत के पहले ट्रांसजेंडर ड्राइविंग स्कूल की वजह से।
“जिंदगी में पहली बार मुझे लगता है कि मैं भी कुछ कर सकती हूँ,” रोशनी अपने अनुभव को साझा करते हुए कहती हैं। उनकी कहानी अकेली नहीं है। कोलकाता के इस अनोखे ड्राइविंग स्कूल ने कई ट्रांसजेंडर लोगों की जिंदगी में नई उम्मीद भरी है।
क्यों जरूरी था ये कदम?
हाशिए पर खड़े समुदाय का संघर्ष
हमारे समाज में ट्रांसजेंडर लोगों को अक्सर नौकरियों से बाहर रखा जाता है। उन्हें दिन-रात कई तरह के भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ता है। मेरी पिछले साल की एक बातचीत में एक ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता ने बताया था, “हमें अक्सर सिर्फ भीख मांगने या शादियों में नाचने के काम ही मिलते हैं। हमें भी सम्मानजनक नौकरी का अधिकार है।”
कोलकाता के एक छोटे से NGO ने इस समस्या को समझा और हल खोजने की कोशिश की। उनके संस्थापक रमेश मिश्रा बताते हैं, “हमने देखा कि मुंबई और बेंगलुरु में कुछ ट्रांसजेंडर ऑटो चला रहे थे और अच्छी कमाई कर रहे थे। बस वहीं से हमें आइडिया मिला।”
ड्राइविंग स्कूल की खासियत
ये है खास ट्रेनिंग प्रोग्राम
साधारण ड्राइविंग स्कूलों से अलग, यहां सिखाया जाता है:
- गाड़ी चलाना तो है ही, साथ में ग्राहकों से बात करने का तरीका भी
- ट्रैफिक नियम के साथ-साथ गाड़ी की छोटी-मोटी मरम्मत
- पैसों का हिसाब-किताब रखना
- कंफिडेंस बिल्डिंग वर्कशॉप
राजेश, एक प्रशिक्षक, अपने अनुभव से बताते हैं, “शुरू में हमें बहुत मुश्किल हुई। कुछ छात्र तो बिल्कुल घबराए हुए थे, पर धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। अब तो वो मुझसे भी अच्छा गाड़ी चलाते हैं!”
हर तरह की मदद
इस स्कूल में सिर्फ ड्राइविंग ही नहीं सिखाते:
- लाइसेंस बनवाने में पूरी मदद
- शुरुआती दिनों के लिए पेट्रोल खर्च में मदद
- लोन दिलवाने में मदद
- मनोवैज्ञानिक सपोर्ट
इस पहल से क्या बदला?
आर्थिक आजादी
“पहले मैं दिन भर में 100-150 रुपये कमा पाती थी, वो भी किसी के सामने हाथ फैलाकर। अब मैं हफ्ते में 3-4 हजार कमा लेती हूँ, और सबसे बड़ी बात – सम्मान के साथ,” कहती हैं पूजा, जो अब कैब चलाती हैं।
पिछले साल सिर्फ 10 छात्रों से शुरू हुआ ये स्कूल अब 50 से ज्यादा ट्रांसजेंडर लोगों को ट्रेनिंग दे चुका है। इनमें से 30 अब पूरे या पार्ट-टाइम ड्राइवर के रूप में काम कर रहे हैं।
समाज में बदलती नज़र
जब एक टैक्सी या ऑटो ड्राइवर ट्रांसजेंडर होता है, तो उससे बातचीत करने वाले लोगों के नजरिए में भी बदलाव आता है। कस्टमर रोजाना देखते हैं कि ट्रांसजेंडर लोग भी वैसे ही हैं जैसे हम सब।
नीतू, एक रेगुलर कस्टमर, कहती हैं, “पहले मैं थोड़ा हिचकिचाती थी, पर अब मुझे पता है कि ये लोग कितने जिम्मेदार ड्राइवर हैं। मैं हमेशा इन्हीं की कैब बुक करती हूँ।”
मानसिक स्वास्थ्य में सुधार
कई ट्रांसजेंडर छात्र बताते हैं कि उनके मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार आया है। वे अब खुद को समाज का हिस्सा महसूस करते हैं। डिप्रेशन और एंग्जायटी के केस कम हुए हैं।
अभी भी हैं कई चुनौतियां
हालांकि शुरुआत अच्छी है, पर रास्ता आसान नहीं है:
- कुछ लोग अभी भी ट्रांसजेंडर ड्राइवर से सवारी करने से हिचकिचाते हैं
- फंडिंग की कमी है
- बैंक लोन दिलवाना मुश्किल है
- कुछ ट्रांसफोबिक घटनाएँ भी सामने आई हैं
सौरभ घोष, स्कूल के को-फाउंडर बताते हैं, “हम हार नहीं मानेंगे। हर दिन थोड़ा आगे बढ़ रहे हैं।”
आगे की योजनाएँ
टीम के पास कई रोमांचक आइडियाज हैं:
- अगले साल तक 200 ट्रांसजेंडर ड्राइवरों को ट्रेन करना
- खुद की कैब सर्विस शुरू करना जिसमें सिर्फ ट्रांसजेंडर ड्राइवर होंगे
- कोलकाता के अलावा अन्य शहरों में भी ऐसे स्कूल खोलना
लोगों का नजरिया
कोलकाता के लोग इस पहल का स्वागत कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी पॉजिटिव कमेंट्स आ रहे हैं।
अनुष्का सेन, एक सामाजिक कार्यकर्ता, कहती हैं, “ये छोटे-छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं। हमें ऐसे और प्रोजेक्ट्स की जरूरत है।”
बात अंत में…
कोलकाता का ये ड्राइविंग स्कूल सिर्फ गाड़ी चलाना नहीं सिखाता, बल्कि एक पूरे समुदाय को आगे बढ़ने का मौका देता है। सड़कों पर स्टीयरिंग संभालते हुए, ये ट्रांसजेंडर ड्राइवर अपनी जिंदगी की गाड़ी भी सही रास्ते पर ला रहे हैं। हमें उम्मीद है कि ऐसी और पहलें सामने आएंगी और हमारा समाज वाकई में समावेशी बनेगा।
अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से एकत्रित की गई है। पाठकों से अनुरोध है कि वे इस जानकारी को उपलब्ध स्रोतों से सत्यापित करें।