कनाडा की राजनीति में 6 जनवरी 2025 को भूचाल आ गया, जब प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अप्रत्याशित रूप से अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की। यह निर्णय न केवल देश के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है। और जैसा कि हमेशा होता है, डोनाल्ड ट्रंप ने अपने विवादित बयानों से फिर सुर्खियां बटोर लीं। उन्होंने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की पुरानी मांग को दोहराते हुए इस राजनीतिक घटना को और अधिक गरमा दिया।
जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा: क्या यह दबाव का परिणाम था?
जस्टिन ट्रूडो, जिनकी करिश्माई छवि ने उन्हें 2015 में सत्ता में लाने में मदद की थी, हाल के वर्षों में अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर सवालों के घेरे में थे। लिबरल पार्टी के इस नेता ने महंगाई, बढ़ते आर्थिक संकट, और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति जैसे मुद्दों पर कड़े विरोध का सामना किया।
महंगाई और आर्थिक संकट:
कनाडा में महंगाई की दर पिछले एक दशक में चरम पर पहुंच गई। ट्रूडो सरकार इस आर्थिक संकट से उबरने में असफल रही, जिसने उनकी लोकप्रियता को गहरा आघात पहुंचाया।
यूक्रेन युद्ध और विदेश नीति:
यूक्रेन युद्ध में कनाडा की भागीदारी और रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों ने ट्रूडो के आलोचकों को मौका दिया। विपक्ष ने इसे देश की अर्थव्यवस्था और कूटनीतिक संबंधों के लिए घातक बताया।
प्रो-खालिस्तान आंदोलन और भारत-कनाडा संबंध:
भारत के साथ बिगड़ते रिश्ते, खालिस्तान समर्थक समूहों को लेकर विवाद, और ट्रूडो की सरकार पर लगे नरम रुख के आरोप उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल कर चुके थे।
डोनाल्ड ट्रंप का विवादित बयान: अमेरिका-कनाडा के रिश्तों पर असर?
जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे की खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपने बयानों से बवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा,
“यह सही समय है जब कनाडा अमेरिका का 51वां राज्य बन सकता है। यह केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक सही कदम होगा।”
ट्रंप का यह बयान न केवल राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, बल्कि कनाडा की स्वतंत्रता और संप्रभुता पर सवाल खड़े करता है।
क्या है ट्रंप का उद्देश्य?
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप इस बयान के जरिए अपने राजनीतिक समर्थकों को यह दिखाना चाहते हैं कि वे अभी भी वैश्विक मामलों पर प्रभाव डाल सकते हैं। लेकिन इसका उद्देश्य अमेरिका-कनाडा संबंधों को बिगाड़ने से अधिक कुछ नहीं लगता।
कनाडा की राजनीतिक अनिश्चितता: आगे क्या होगा?
जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद, कनाडा की लिबरल पार्टी को नए नेता की तलाश करनी होगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या पार्टी इस राजनीतिक संकट से उबर पाएगी?
लिबरल पार्टी के सामने चुनौतियां:
- नया नेतृत्व: क्या पार्टी किसी अनुभवी नेता को आगे लाएगी, या युवा और नई सोच वाले व्यक्ति को मौका देगी?
- आर्थिक नीतियां: महंगाई और बेरोजगारी को नियंत्रित करने के लिए ठोस योजनाओं की आवश्यकता है।
- अंतरराष्ट्रीय कूटनीति: भारत और रूस जैसे देशों के साथ बिगड़ते रिश्तों को सुधारने की चुनौती होगी।
अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और जनता का गुस्सा
ट्रूडो के इस्तीफे ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा है। भारत, रूस, और अमेरिका जैसे देश इस स्थिति पर करीबी नजर रख रहे हैं। वहीं, कनाडा की जनता, जो पहले से आर्थिक संकट और महंगाई से जूझ रही है, ट्रूडो सरकार के खिलाफ मुखर हो चुकी है।
क्या कनाडा स्थिरता की ओर बढ़ेगा या राजनीतिक भूचाल जारी रहेगा?
जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा न केवल कनाडा के लिए बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिए भी एक महत्वपूर्ण घटना है। डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेताओं के विवादित बयानों से स्थिति और अधिक पेचीदा हो रही है।
अब सवाल यह है कि क्या कनाडा लिबरल पार्टी के नए नेतृत्व के तहत स्थिरता हासिल कर पाएगा? या यह राजनीतिक संकट और बढ़ेगा? एक बात तो साफ है, कनाडा की राजनीति में आने वाले कुछ महीने बेहद चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं।
ट्रूडो का इस्तीफा: सिर्फ एक अध्याय का अंत या नई शुरुआत?
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कनाडा इस संकट से कैसे उबरता है और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान को कैसे कायम रखता है।