
Published on: 29/09/2025
Durga Puja 2025: नवरात्रि और दुर्गा पूजा का नाम सुनते ही ज्यादातर लोगों के मन में व्रत, उपवास और सात्विक भोजन की छवि उभरती है। उत्तर भारत में जहां भक्त इस दौरान मांस, मदिरा और यहां तक कि प्याज-लहसुन तक से परहेज करते हैं, वहीं बंगाल में तस्वीर थोड़ी अलग होती है। यहां दुर्गा पूजा के मौके पर मछली और मटन जैसे व्यंजन परंपरा का अहम हिस्सा माने जाते हैं। यही कारण है कि लोग अक्सर सवाल करते हैं – आखिर मां दुर्गा की पूजा में मांसाहारी भोजन कैसे शामिल हो सकता है? आइए जानते हैं इस परंपरा के पीछे की मान्यताएं और धार्मिक महत्व।
बेटी का मायके आना, पूजा से ज्यादा पारिवारिक उत्सव
बंगाल में दुर्गा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि इसे एक पारिवारिक उत्सव माना जाता है। यहां देवी दुर्गा को केवल शक्ति की प्रतिमा नहीं, बल्कि बंगाल की बेटी माना जाता है। मान्यता है कि शारदीय नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा अपने चारों बच्चों के साथ मायके आती हैं।
जैसे कोई बेटी अपने घर आती है तो परिवार उसकी पसंद का हर व्यंजन बनाकर उसका स्वागत करता है, वैसे ही बंगाली परिवार मां दुर्गा के आगमन पर पारंपरिक पकवान तैयार करते हैं। इन व्यंजनों में खासतौर पर मछली, मटन और बंगाली मिठाइयां शामिल होती हैं। इस परंपरा से यह पूजा एक धार्मिक आयोजन के साथ-साथ एक पारिवारिक मिलन समारोह भी बन जाती है।
शाक्त संप्रदाय और बलि की परंपरा
बंगाल में दुर्गा पूजा शाक्त संप्रदाय से गहराई से जुड़ी है। इस संप्रदाय में देवी की आराधना में बलि और कुछ स्थानों पर मांसाहार का विशेष महत्व है। कई जगहों पर देवी को मछली या मांस का भोग लगाया जाता है।
हालांकि यह भोग सामान्य तरीके से नहीं बनता। इसमें प्याज और लहसुन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसे खास तौर पर ‘निरामिश मंगशो’ यानी सात्विक मटन कहा जाता है। यह भोजन बाद में भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। इस परंपरा से साफ होता है कि यहां भोजन केवल स्वाद नहीं, बल्कि श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है।
मछली: समृद्धि और शुभता का प्रतीक

मछली: समृद्धि और शुभता का प्रतीक (Photo:Ai Photo)
बंगाली संस्कृति में मछली को सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि उर्वरता, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। शादी-ब्याह से लेकर त्योहारों तक, हर शुभ अवसर पर मछली का होना आवश्यक समझा जाता है।
विजया दशमी की सुबह विशेष रूप से एक जोड़ी मछली मंगल घट के सामने रखी जाती है। इसे बेहद शुभ माना जाता है। इसी कारण दुर्गा पूजा के दौरान मछली के व्यंजन को शुभता और समृद्धि का प्रतीक समझा जाता है, न कि उपवास तोड़ने का काम।
क्या सभी बंगाली मांसाहार करते हैं?
यह जरूरी नहीं कि हर बंगाली परिवार दुर्गा पूजा में मांसाहार करता ही हो। बंगाल में वैष्णव परंपरा से जुड़े कई परिवार इस दौरान सात्विक भोजन ही ग्रहण करते हैं। खासकर कुछ ब्राह्मण समुदाय प्याज-लहसुन और मांस-मछली से पूरी तरह परहेज करते हैं।
फिर भी, ज्यादातर परिवारों में मछली और मटन के विशेष पकवान इस उत्सव का हिस्सा होते हैं। शहरी क्षेत्रों में समय के साथ सात्विक भोजन का चलन जरूर बढ़ा है, लेकिन गांवों और पारंपरिक परिवारों में यह प्रथा अब भी उतनी ही जीवित है। यही वजह है कि बंगाल की दुर्गा पूजा देश और दुनिया में अलग पहचान रखती है।
दुर्गा पूजा के दौरान मांस और मछली का सेवन बंगाली संस्कृति और आस्था का ऐसा अनूठा मेल है, जिसमें देवी को एक बेटी की तरह सम्मान दिया जाता है। यह सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पूरे समाज के एकजुट होने और खुशी बांटने का पर्व भी है। यही परंपरा बंगाल की दुर्गा पूजा को खास और बाकी जगहों से अलग बनाती है।
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