प्रारंभिक जीवन और करियर की शुरुआत
बर्खा मदान का जन्म एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उन्होंने 1994 में मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जहां सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय जैसी प्रतिभागियों के साथ फाइनलिस्ट बनीं। मॉडलिंग में सफलता के बाद, उन्होंने 1996 में अक्षय कुमार और रेखा के साथ फिल्म ‘खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ से बॉलीवुड में पदार्पण किया। इस फिल्म में उनके अभिनय की काफी प्रशंसा हुई और उन्हें कई फिल्मों के प्रस्ताव मिले।
फिल्मों और टेलीविजन में सफर
‘खिलाड़ियों का खिलाड़ी’ की सफलता के बाद, बर्खा ने खुद को चुनिंदा प्रोजेक्ट्स तक सीमित रखा। उन्होंने इंडो-डच फिल्म ‘ड्राइविंग मिस पामेन’ (2000) में काम किया। उनके करियर में राम गोपाल वर्मा की हॉरर फिल्म ‘भूत’ (2003) एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसमें उनके भूत के किरदार को सराहा गया। इसके अलावा, उन्होंने ‘न्याय’ और ‘1857 क्रांति’ जैसे टीवी सीरियल्स में भी काम किया और अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘गोल्डन गेट LLC’ की स्थापना की, जिसके तहत ‘सोच लो’ और ‘सुरखाब’ जैसी फिल्मों का निर्माण किया।
बौद्ध धर्म की ओर रुझान
बचपन से ही बौद्ध धर्म की विचारधारा से प्रभावित बर्खा ने 2002 में धर्मशाला में दलाई लामा के प्रवचन सुने, जिससे उनकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत हुई। उन्होंने 2012 में अपने परिवार को अपनी इच्छा के बारे में बताया, जिन्होंने उनका समर्थन किया। 4 नवंबर 2012 को, लामा जोपा रिनपोचे की देखरेख में, उन्होंने सेरा जे मठ में दीक्षा ली और अपना नाम बदलकर वें. ग्याल्टेन समटेन रख लिया।
नया जीवन और उद्देश्य
बौद्ध भिक्षुणी बनने के बाद, बर्खा ने सादगीपूर्ण जीवन अपनाया। उनके पास अब केवल एक जोड़ी चप्पल, दो जोड़ी कपड़े, एक मोबाइल फोन और एक लैपटॉप है। उनका सपना है कि भारत में अपना मठ स्थापित करें, जहां इच्छुक महिलाएं नन बनने का प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें। उनका मानना है कि जैसे फिल्म स्कूल या मेडिकल कॉलेज होते हैं, वैसे ही नन बनने के लिए भी एक संस्थान होना चाहिए।
प्रेरणा और समाज सेवा
बर्खा का कहना है कि उनकी जिंदगी में सबकुछ सही चल रहा था, लेकिन उन्हें हमेशा लगता था कि कुछ कमी है। मिस इंडिया प्रतियोगिता के दौरान, जब उनसे पूछा गया कि जीतने पर वे क्या करेंगी, तो उन्होंने कहा था कि वे वंचित बच्चों के लिए काम करेंगी। आज वे उसी उद्देश्य को पूरा कर रही हैं, मानवता की सेवा कर रही हैं।
बर्खा मदान की कहानी यह दर्शाती है कि आत्मसंतोष और आंतरिक शांति के लिए भौतिक सुख-सुविधाओं से परे जाकर आत्म-खोज की आवश्यकता होती है। उनकी यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि सच्ची खुशी बाहरी सफलता में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और समाज सेवा में निहित है।
लेखक
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नलिनी मिश्रा: डिजिटल सामग्री प्रबंधन में विशेषज्ञता नलिनी मिश्रा डिजिटल सामग्री प्रबंधन की एक अनुभवी पेशेवर हैं। वह डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में कुशलतापूर्वक काम करती हैं और कंटेंट स्ट्रैटेजी, क्रिएशन, और प्रबंधन में विशेषज्ञता रखती हैं
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